भारतवर्ष के सभ्यता इतिहास में पुरातन सभ्यताऐं जैसे :- सिन्धु घाटी, मोहनजोदडो जैसी सम्पन्न सभ्यताओं के पुरातन प्राप्त अवशेषों एवं भारत के कई प्राचीन ऋषि ग्रंथों में मेघवाल समाज की उत्पत्ति एवं उन्नति की जानकारीयां मिली हैं। समाज के प्रात: स्मरणीय स्वामी गोकुलदासजी द्वारा सदग्रंथों से प्राप्त जानकारी के आधार पर भी समाज के सृजनहार ऋषि मेघ का विवरण ज्ञात हुआ है। मेघवाल इतिहास ऋषि परम्पराओं वाला तथा शासकीय स्वरूप वाला रहा है। मेघऋषि का इतिहास भारत के उत्तर-पश्चिमी भूभाग की सरसब्ज सिन्धुघाटी सभ्यता के शासक एवं धर्म संस्थापक के रूप में रहा है, जो प्राचीनकाल में वस्त्र उद्दोग, कांस्यकला तथा स्थापत्यकला का विकसित केन्द्र रहा था। संसार में सभ्यता के सूत्रधार स्वरूप वस्त्र निर्माण की शुरूआत भगवान मेघ की प्रेरणा से स्वयं भगवान शिव द्वारा ऋषि मेघ के जरिये कपास का बिजारोपण करवाकर कपास की खेती विकसित कर करवाई गयी थी, जो समस्त विश्व की सभ्यताओं के विकास का आधार बना। समस्त उत्तर-पश्चिमी भूभाग पर मेघऋषि के अनुयायियों एवं वंशजों का साम्राज्य था, जिसमें लोगों का प्रजातांत्रिक तरीके से विकास हुआ था, जहां पर मानवमात्र एकसमान था। लेकिन भारत में कई विदेशी कबीले आये जिनमें आर्य भी एक थे। उन्होंने अपनी चतुराई एवं बाहुबल से इन बसे हुये लोगों को खंडित कर दिया तथा उन लोगों को सम्पूर्ण भारत में बिखर जाने लिये विवश कर दिया. चूंकि आर्य समुदाय शासक के रूप में एवं सभी संसाधनों के स्वामी के रूप में यहां स्थापित हो चुके थे। उन्होंने अपने वर्णाश्रम एवं ब्राह्मणी संस्कृति को यहां थोप दिया था। ऐसी हालत में उनसे हारे हुये मेघऋषि के वंशजों को आर्यों द्वारा नीचा दर्जा दिया गया, जिसमें आज के वर्तमान के सभी आदिवासी, दलित एवं पिछडे लोग शामिल थे। भारत में स्थापित आर्य सभ्यता वालों ने यहां पर अपने अनुकूल धर्म, परमपरायें एवं नियम, रिवाज आदि कायम कर दिये थे, जिनमें श्रम सम्बन्धि कठिन काम पूर्व में बसे हुये लोगों पर थोपकर उनसे निम्नता का व्यवहार किया जाना शुरू कर दिया था तथा उन्हें पुराने काल के राक्षस, नाग, असुर, अनार्य, दैत्य आदि कहकर उनकी छवि को खराब किया गया। इन समूहों के राजाओं के धर्म को अधर्म कहा गया था. इस प्रकार इतिहास के अंशों को देखकर मेघऋषि के वंशजों को अपना गौरवशाली अतीत पर गौरवान्वित होना चाहिये तथा वर्तमान व्यवस्था में ब्राह्मणवादी संस्कृति के थोपी हुई मान्यताओं को नकारते हुये कलियुग में संत शिरोमणी रविदासजी महाराज एवं बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर के बताये आदर्शों पर अमल करते हुये अपने अधिकार प्राप्त करने चाहिये। समाज में मेघवंश को सबल बनाने के लिये संत शिरोमणी रविदासजी महाराज, स्वामी गोकुलदासजी महाराज एवं गरीबदासजी महाराज जैसे संत हुये हैं, जिन्होंने मेघवाल समाज के गौरव को भारत के प्राचीन ग्रंथों से समाज की उत्पत्ति एवं विकास का स्वरूप उजागर कर हमें हमारा गौरवशाली अतीत बताया है तथा हमें निम्नता एवं कुरीतियों का त्याग कर सत् कर्मों की ओर बड़ने का मार्ग दिखाया है।